अहंकार कम करने के उपाय

विनम्रता को अपने जीवन का आदर्श बनाएं :
जो व्यक्ति समृद्धि के शिखर पर बैठने के बाद भी विनम्रता की मूर्ति बने बैठे हैं उनसे हम कुछ सीखें और ये बात समझें कि महानता का आधार अहंकार नहीं विनम्रता है। पेड़ उतना ही ऊंचा उठता है जितनी कि उसकी जड़ें गहरी होती है। ऊंचाई सदैव गहराई सापेक्ष होती है, ये हमारे चिंतन में होना चाहिए। विनम्रता को जीवन का आदर्श बनाकर चलने वाला व्यक्ति ही अपने अहंकार को जीत सकता है।

संयोगों की नश्वरता का विचार करें :
मनुष्य को अपने रूप, वैभव, बुद्धि, धन, प्रभाव और प्रतिष्ठा पर अहंकार होता है। परन्तु ये सब चीजें स्थाई नहीं हैं। आज कर्म का उदय है तो सब कुछ ठीक है, पर कर्म कभी भी करवट बदल सकता है। हमें जीवन और संयोगों की नश्वरता पर बार-बार विचार करना चाहिए। अहंकार करने लायक दुनिया में कुछ नहीं है। ये संयोग नश्वर हैं, टिकाऊ नहीं हैं। जो संयोग आज है कल रहे ना रहे। हवा के वेग से कागज का एक टुकड़ा उड़ा और पर्वत के शिखर तक जा पहुंचा। पर्वत ने उस कागज से पूछा कि यहां कैसे? कागज ने अहंकार से अकड़ते हुए कहा- अपने दम से और कैसे। तभी हवा का एक दूसरा झोंका आया और उस कागज को उड़ाकर वापस नीचे ले आया। अगले पल वह कागज नाली में पड़ा हुआ सड़ रहा था। बस यही है मनुष्य की परिणति। इसलिए मनुष्य को अहंकार त्याग देना चाहिए। जिस दिन पाप का प्रकोप आएगा, नाली में सड़ना पड़ेगा।

अपने से ऊपर वालों को देखें :
जब हमको अहंकार सताने लगे तो हमें देखना चाहिए कि मुझसे भी बड़े-बड़े लोग हैं। औरों के आगे तो मैं कुछ नहीं हूं। अज्ञानी प्राणी तुच्छ उपलब्धियों को ही सर्वस्व मानकर अभिमान करता है जबकि ज्ञानी महान उपलब्धियों को भी तुच्छ समझता है। तो हमें ये देखना चाहिए कि औरों की अपेक्षा मैं क्या हूं। हम कितने भी बड़े बन जाएं सबसे बड़े नहीं हो सकते। ये विचार करने से जीवन में अहंकार कम होगा।

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