कौन सुखी है ?
(मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रवचनांश)
एक आदमी अपनी पत्नी और बच्चों के साथ स्कूटर से जा रहा था। स्कूटर पर चार लोग बैठे थे, खुद था, धर्मपत्नी थी और दो बच्चे थे। बरसात का समय था, उसके स्कूटर से पानी के छींटे उछले और एक पहलवान के कुर्ते पर पड़ गए। पहलवान को गुस्सा आया और उसे एक घूँसा मार दिया। वो बोला- भैया! मुझे मारा तो ठीक पर मेरी पत्नी को मत मारना, उसने पत्नी को भी मार दिया। वो फिर बोला- भाई! पत्नी को मार दिया तो ठीक, पर बच्चों को मत छेड़ना। उसने एक-एक करके बच्चों को भी एक-एक तमाचा मार दिया। जब चारों को मारा तो उसने स्कूटर की किक मारी, बिठाया और गाड़ी लेकर चलता बना। घर आया, बच्चों ने कहा, पापा हद हो गई! आप तो पिटे सो पिटे पर हम लोगों को भी पिटवा दिया। पापा बोले- देखो! अब कोई नहीं कहेगा कि अकेले पापा पिटे, सब पिटे।
मैं आप से कहता हूँ जब भी तुम्हारे जीवन में दुःख आये, यह यह मत सोचो कि मेरे जीवन में दुःख है, यह सोचो कि सब दुःखी हैं। सब पिटे-पिटाये हैं, कोई सुखी नहीं है, मामला बराबर। सब दुःखी हैं इतना ही तो सोचना है और हकीकत में बोलो कौन सुखी है। है कोई सुखी? सब दुःखी हैं। अरे! दुःख तो संसार का स्वभाव है, उसको कोई टाल ही नहीं सकता।