बंदर क्या जाने रत्नों का मूल्य

मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रवचनांश

एक बार एक बन्दर को एक रत्नों की पोटली मिली। उसने उस पोटली को खाने की वस्तु समझकर उठा लिया और पेड़ पर चढ़ गया। एक डाल पर बैठकर उसने पोटली खोली और एक रत्न को मुँह में डाला। उसे रत्न का स्वाद अटपटा लगा और उसे नीचे फेंक दिया। फिर उसने दूसरे रत्न को खाने के लिए मुँह में डाला लेकिन उसे इस बार भी कोई स्वाद नहीं आया, और इसे भी नीचे फेंक दिया। इस तरह उसने एक-एक करके पूरी पोटली खाली कर दी। रत्नों को यह सब समझ नहीं आया और उन्होंने धरती माता से कहा, हे माता! देखो तो यह कैसा नादान बन्दर है। सारी दुनिया हमें पाने को तरसती है, हमें अपने माथे के मुकुट में लगाती है, और एक यह है जो इतनी बेशकीमती, मूल्यवान वस्तु को फेंक रहा है! धरती माँ मुस्कुराई और कहा कि इसमें दोष उसका नहीं, दोष उसकी अपात्रता का है। यदि उसे तुम्हारे मूल्य की पहचान होती, तो ऐसा कभी नहीं करता।

यही हम सभी के जीवन की सच्चाई है। हमारा जीवन भी किसी मूल्यवान रत्न की पोटली से कम नहीं है। लेकिन जो इसके मूल्य को समझता है, इसके महत्व को जानता है, वह इसको सँभाल कर रखता है और इसका समादर करता है। जो इसके मूल्य और महत्व से अनभिज्ञ होते हैं, वे सब उस बन्दर की तरह अपने जीवन की इन बेशकीमती मूल्यवान साँसो को यों ही व्यर्थ कर देते हैं।

महत्व जीवन को समझने का और इस जीवन को समझ कर ठीक ढंग से जीने का है।

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