राम नाम सत्य है

मुनि श्री प्रमाणसागर जी के प्रवचनांश

एक छोटा बच्चा था, जो बहुत शरारती था। उसे लोगों को परेशान करने और सताने में बड़ा आनन्द आता था। एक पण्डित जी थे जो बड़े भले आदमी थे, और मन्दिर में भगवान की पूजा किया करते थे। सभी लोग उनका पूरा सम्मान करते थे और उनकी विनय करते थे।

एक दिन उस शरारती लड़के ने पण्डित जी को छेड़ने के लिए कह दिया ‘राम नाम सत्य है’। जैसे ही पण्डित जी ने यह शब्द सुने, वह गुस्सा हो गये और बोले यह क्या बोल रहा है तू, यह कोई बोलने की बात है? क्या तुझे पता नहीं ये शब्द कब बोले जाते हैं? अरे! ये शब्द तो किसी व्यक्ति के मरने के बाद बोले जाते हैं और पण्डित जी उसे पकड़ने का प्रयास करते हैं। लेकिन लड़का वहाँ से भाग जाता है। अब वह लड़का जब भी उस रास्ते से निकलता, भले ही पण्डित जी पूजा कर रहे हों, भगवान की आरती उतार रहे हों, वह बोल देता ‘राम नाम सत्य है’। पण्डित जी यह देखकर आगबबूला हो जाते हैं। एक दिन जब वह लड़का फिर से वही शब्द बोलता है कि “राम नाम सत्य है”, तो पण्डित जी गुस्से में लाठी लेकर उसके पीछे दौड़ पड़ते हैं और सीधे उसके घर पहुँचते हैं और घर में जाकर लड़के के पिता से उसकी शिकायत करते हैं और कहते हैं कि इस लड़के को समझाओ, यह बहुत बेहूदी बातें बोलता है, यह अनाप-शनाप बोलता है। पिताजी हैरान होते हैं और कहते हैं

ऐसा तो बिल्कुल नहीं बोलना चाहिए। पण्डित जी! आप मुझे बतायें कि यह लड़का क्या बोलता है। अब पण्डित जी चुप हो जाते हैं और कुछ नहीं बताते। लड़का भी कहता है- पण्डित जी! बताइए तो सही मैंने क्या बोला? पूरी सच्चाई बताइए मैंने क्या बोला? यदि आप मेरे ऊपर आरोप लगा रहे हैं, तो यह भी तो बतायें कि मैंने बोला क्या है। पण्डित जी शान्त होते हुए कहते हैं, नहीं-नहीं यह तो बताने की बात नहीं है, यह तो गलत बोलता है। लड़का फिर कहता है कि यदि आप नहीं बताते हो, तो क्या मैं बोल दूँ? पण्डित जी उसे भी बोलने से रोक देते हैं। पिताजी स्थिति को सँभालते हैं और पण्डित जी से बातचीत करके, उन्हें विदा करते हैं।

पण्डित जी के जाने के बाद पिता लड़के से पूछते हैं, तुमने ऐसा क्या कह दिया, जो इतना बवाल खड़ा हो गया। लड़का बोलता है- मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने तो सिर्फ़ यही कहा कि ‘राम नाम सत्य है’। वे कहते हैं, यह तो मुर्दे को सुनाने की बात है। अब आप ही बताओ कि मुर्दे को क्यों सुनायें, मुर्दा कभी सुनता है क्या? ये शब्द तो जिन्दा इंसान को सुनाने चाहिए। पिताजी शान्त होते हैं और कहते हैं कि बात तो बिल्कुल सही है, लेकिन सच्चाई यही है कि इन शब्द- ‘राम नाम सत्य है’ को जीते-जी तो कोई सुनना पसन्द नहीं करता। लेकिन मरने के बाद लोगों को सुनाते हैं। इसलिए लोग जिन्दा होते हुए भी मुर्दे बने रहते हैं। जिस दिन लोग जीते-जी इन शब्द ‘राम नाम सत्य है बाकी सब असत्य है’, को सुनना शुरू कर देंगे, जीवन के परम तत्व को समझ जायेंगे।

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