जैन दर्शन में आत्मशक्तियों के विकास अथवा आत्मा से परमात्मा बनने की शिखर यात्रा के क्रमिक सोपानों को चौदह गुणस्थानों द्वारा बहुत सुंदर ढंग से विवेचित किया गया है. जैन दर्शन में जीव के आवेगों-संवेगों और मन-वचन-काय की प्रवत्तियों के निमित्त से अन्तरंग भावों में होने